पार्वती जी की चालीसा
॥ दोहा ॥
जय गिरी तनये डग्यगे शम्भू प्रिये गुणखानी
गणपति जननी पार्वती अम्बे ! शक्ति ! भवामिनी
Copyright 2018 |
॥ चालीसा॥
ब्रह्मा भेद न तुम्हरे पावे , पांच बदन नित तुमको ध्यावे।
शशतमुखकाही न सकतयाष तेरो , सहसबदन श्रम करात घनेरो।।
तेरो पार न पाबत माता, स्थित रक्षा ले हिट सजाता
आधार प्रबाल सद्रसिह अरुणारेय , अति कमनीय नयन कजरारे।
ललित लालट विलेपित केशर कुमकुम अक्षतशोभामनोहर।
कनक बसन कञ्चुकि सजाये, कटी मेखला दिव्या लहराए।।
कंठ मदार हार की शोभा , जाहि देखि सहजहि मन लोभ।
बालार्जुन अनंत चाभी धारी , आभूषण की शोभा प्यारी ।।
नाना रत्न जड़ित सिंहासन , टॉपर राजित हरी चारुराणां।
इन्द्रादिक परिवार पूजित , जग मृग नाग यज्ञा राव कूजित।।
श्री पार्वती चालीसा गिरकल्सिा,निवासिनी जय जय ,
कोटिकप्रभा विकासिनी जय जय।
Copyright 2018 |
त्रिभुवन सकल , कुटुंब तिहारी , अनु -अनु महमतुम्हारी उजियारी।
कांत हलाहल को चबिचायी , नीलकंठ की पदवी पायी ।।
देव मगन के हित अस किन्हो , विश्लेआपु तिन्ही अमि दीन्हो।
ताकि तुम पत्नी छविधारिणी ,दुरित विदारिणी मंगल कारिणी।।
देखि परम सौंदर्य तिहारो , त्रिभुवन चकित बनावन हारो।
भय भीता सो माता गंगा , लज्जा मई है सलिल तरंगा।।
सौत सामान शम्भू पहायी , विष्णुपदाब्जाचोड़ी सो धैयी।
टेहिकोलकमल बदनमुर्झायो , लखीसत्वाशिवशिष चड्यू ।।
नित्यानंदकरीवरदायिनी , अभयभक्तकरणित अंपायिनी।
अखिलपाप त्र्यतपनिकन्दनी , माही श्वरी , हिमालयनन्दिनी।।
काशी पूरी सदा मन भाई सिद्ध पीठ तेहि आपु बनायीं।
भगवती प्रतिदिन भिक्षा दातृ ,कृपा प्रमोद सनेह विधात्री ।।
रिपुक्षय कारिणी जय जय अम्बे , वाचा सिद्ध करी अबलाम्बे।
गौरी उमा शंकरी काली , अन्नपूर्णा जग प्रति पाली।।
सब जान , की ईश्वरी भगवती , पति प्राणा परमेश्वरी सटी।
तुमने कठिन तपस्या किणी , नारद सो जब शिक्षा लीनी।।
Copyright @ 2018 |
अन्ना न नीर न वायु अहारा , अस्थिमात्रतरण भयुतुमहरा।
पत्र दास को खाद्या भाऊ , उमा नाम तब तुमने पायौ।।
तब्निलोकी ऋषि साथ लगे दिग्गवान डिगी न हारे।
तब तब जय , जय ,उच्चारेउ ,सप्तऋषि , निज गेषसिद्धारेउ।।
सुर विधि विष्णु पास तब आये , वार देने के वचन सुननए।
मांगे उबा, और, पति, तिनसो, चाहत्ताज्गा , त्रिभुवन, निधि, जिन्सों।।
एवमस्तु कही रे दोउ गए , सफाई मनोरथ तुमने लए।
करी विवाह शिव सो हे भामा ,पुनः कहाई है बामा।।
जो पढ़िए जान यह चालीसा , धन जनसुख दीहये तेहि ईसा।।
।।दोहा।।
कूट चन्द्रिका सुभग शिर जयति सुच खानी
पार्वती निज भक्त हिट रहाउ सदा वरदानी।
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