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Thursday, July 27, 2017

Shiv Vivah in Hindi shiv shakti

शिव विवाह 

शिव महापुराण के अनुसार शिव विवाह की कथा अनोकी हैं।

एक उस समय की बात है जब हिमाचल राज्य के राजा हिमनरेश हिमावन और उनकी पत्नी मेनावती अपना जीवन यापन कर रहे थे।
कुछ समय बाद उन के घर में एक कन्या का जन्म हुआ। जिसका नाम पार्वती हुआ। पार्वती शुरू से ही शिव की भक्ति में डूबी हुई है।



बचपन से पार्वती शिव की भक्ति बहुत अधिक करती है तथा बचपन में ही उन्होंने शिव को अपना पति मान लिया
जब पार्वती की युवा अवस्था आई तो उनकी माता ने हिमाचल राज के सामने पार्वती के विवाह का प्रस्ताव रखा।
उन्होंने कहा कि पार्वती विवाह योग्य हो गई है और इस का विवाह अब हमें तुरंत करना होगा इसलिए इसके लिए उचित वर ढूढ़ा जाये।
हिमाचल राज ने अपने पुरोहित पंडित को बुलाया और उससे पार्वती के विवाह के लिए कहा - पार्वती के लिए ऐसा वर ढूंढिए जो अति सुंदर एवम संपन्न हो तथा उसका प्रताप पूरी पृथ्वी पर हो।
हिमाचल राज के अनुसार ब्राह्मण पार्वती की कुंडली लेकर उनके लिए उचित वर ढूंढने के लिए देश-देश,  गांव-गांव, नगर-नगर घूमता रहा पर उनको कोई योग्य वर नहीं मिला।
काफी समय तक ढूंढने के बाद वह वापस हिमाचल राज के पास गए। तब पार्वती ने उनको बताया की मेरा वर महर्षि नारद के अनुसार शिव शंकर होंगे इसलिए आप कैलाश जाइए और मेरे विवाह का प्रस्ताव रखिए।
ब्राह्मण पार्वती की बात सुनकर कैलाश पर्वत जा पहुंचा वहां पर शिव शंकर से कहा- कि मैं तुम्हारे लिए विवाह का रिश्ता लेकर आया हूं लड़की हिमाचल राज की पुत्री पार्वती है जो सुंदर सुशील है।
शिव शंकर ने कहा- कि मैं तो योगी हूं, और ना मेरा घर है, ना मेरा कोई निश्चित स्थान है, अपने तन पर में भस्म रमा के रहता हूँ, तथा भूत-प्रेत मेरे साथ रहते हैं, और राम नाम का में सुमिरन करता हूँ, ध्यान करता हूँ, समाधि लगता हूँ।
अब आप बताये की एक रानी मेरे साथ जीवन यापन कैसे करेगी, वह राजसी आराम को कैसे छोड़ेगी।
आप  उनसे कहना- कि मैं उनके योग्य नहीं हूं वक्त कोई और योग्य वर ढूढ़े।
शिव की बात सुनकर ब्राह्मण बोला कि मैं उसके आदेश से ही यहां आया हूं और उन्होंने ही बताया है कि वह आपसे ही विवाह करना चाहती है। तब शिवजी ने बोला की जैसी देवी की इच्छा तो में विवाह करने के लिए तैयार हूं। ब्राह्मण देव ने साया निकाला और कहां की माघ के महीने की चतुर्दशी को आपका विवाह पार्वती से होगा ( इस दिन को महाशिवरात्रि मानी जाती हैं।) ब्राह्मण देव ने सगाई की रस्म पूरी कर दी। ब्राह्मण देव थोड़ी देर तक वहां रुके पर उनसे किसी ने भोजन तक की भी नहीं पूछा। ब्राह्मण देव मन ही मन में सोचने लगे कि जो सगाई में मुझसे भोजन तक की भी नहीं पूछा वह मुझे विवाह में क्या दक्षिणा देगा। तभी शिव ने बोला कि ब्राह्मण देव आप भोजन करके जरूर जाना। ब्राह्मण देव भोजन करने के लिए गए वहां पर उन्होंने भोजन किया और नए-नए व्यंजन बने हुए हैं। जिनको कभी ब्राह्मण देव ने खाया नहीं था ब्राह्मण देव बहुत अधिक खुश हुए । अब उनका जाने का समय हो गया था वह मन में सोच रहे है कि दक्षिणा तो नहीं मिली। तब शिव जी आते हैं और ब्राह्मण देव से कहते हैं कि मेरे पास तो सिर्फ यह नाग हैं,त्रिशूल है,डमरु है और राख है पंडित जी सोचने लगे कि मैं इन व्यर्थ की चीजों को क्यों लेकर जाऊं इनका मैं क्या करूंगा।
तब शिव ने पंडित जी के झोले में राख डाल दी और कहा कि इसे कहीं नहीं फेंकना। पंडित जी उस राख को लेकर वहां से चले गए।रास्ते में चलते चलते उन्हें याद आया कि उनके झोले में राख रखी हुई है। पंडित जी ने राख निकाल कर बाहर फेंक दी। राख जैसे ही जमीन पर गिरी वह राख हीरे मोतियों में बदल गई।
पंडित फिर उसे उठाने लगा परंतु जैसे ही वह उठाता वह हीरे मोती वापस राख बन जाते हैं। ब्राह्मण सोचने लगा शिव शंकर ने सही कहा था की इसे नही फेकना,  अब शायद यह मेरी किस्मत में नहीं है पंडित वहां से चला जाता है और हिमाचल राज के दरबार में जाकर पहुंच जाता है
पंडित ने हिमाचल राज्य को बताया कि- मैं पार्वती का रिश्ता योगी खानदान में कर कर आया हूं जहां पर धन दौलत की कोई कमी नहीं है
हिमाचल राज पूछते हैं- की लड़का क्या करता है
पंडित जी कहते हैं-कि पर्वत पर उनकी समाधि लगाती हैं, राम नाम का भजन करते हैं और उनके पास अनेकों सिद्धियां हैं।
हिमाचल राज यह सुनकर क्रोधित हो जाते हैं। और बोलते है- ये कैसा वर ढूढ़ा, तुमने मेरे कुल को दोष लगाया हैं। हिमाचल राज शांत होकर बोले- करोड़ो अरबो बाराती आने को कहना।  ना वो योगी इतने बाराती ला पाएगा और ना वह विवाह करने आएगा।
हिमाचल राज की बात सुनकर पंडित जी कैलाश पर्वत चले गए और कहां शिवजी से कि आपको करोड़ों-अरबों बाराती लाने हैं आपका स्वागत भव्य होगा किसी चीज की कमी नहीं होगी यह हमारे राजन ने कहा है शिव ने यह बात सुनकर कहा कि मैं करोड़ों-अरबों बाराती ले आऊंगा
विवाह का समय आया नन्दी बोला शिव जी से- प्रभु उठो आज आपका विवाह है। आप कैसे भूल गए
सब का कारज करने वाले अपना कारज भूल गए है।
शिव जी बोले की बारात की तैयारी करो और एक ही पल में वह हिमाचल राज के राज्य में पहुंच गए । उनकी बारात में भूत, प्रेत, गन्धर्व, देव, चोसठ योनिया है। और खुद सौ साल के बूढ़े बन गए और नन्दी बैल की करी सवारी और चले आ रहे है। पार्वती को ब्याने ।
तब ही पार्वती की सहेलियां मिली और कहा कि यहां से जाओ यहां पर गोरा की बारात आ रही है और तुम यहां पर क्या लेने आए हो शिव शंकर भगवान बोलते हैं कि मैं ही गौरा का पति हूं मैं ही उनसे शादी करने आया हूं तब पार्वती की सहेलियां बोलती हैं कि तुम बूढ़े हो तुम्हारे उम्र शादी करने की नहीं है और अपनी शकल देखो आईने में तुम किसी के पति बनने लायक नहीं हो। शिवजी ने यह बात सुनकर उनको यह बोला कि तुम उनके पिता से पूछ कर आ जाओ और यह लो मेरे साँप सारी सहेलियां डर के मारे हिमाचल राज्य के दरबार में पहुंचे और कहां हिमाचल राज से आपने गोरा का वर कैसे ढूंढा है जिसे देख कर ही डर लगता है। हिमाचल राज यह सुनकर बहुत ही दुखी होते हैं परतु उनको पता हैं। वह स्वम भगवान हैं। बारात महल के पास आ जाती है। नेनारानी जब शिव जी को देखती है तो वह बेहोश हो जाती है पार्वती जी शिवजी से अकेले में मिलती है और कहती है - हे प्रभु अपनी लीलाओ को बंद कर दीजिये । सभी डरे हुए 
शिवजी ने पार्वती की बात मान ली। और नया रूप धार लिया जो की विश्व प्रसिद्ध चंदर्शेखर के नाम से आज जानते है।
चंदर्शेखर रूप में शिव जी बारह वर्ष के बालक का धारण किया जिसमे शिव जी अतिसुन्दर दिखाई देते है। हिमालय के सभी लोग प्रसन्न हो गए। और शिव जी का विवाह होने लगा पार्वती की माता ने उनको बड़े प्यार स्वागत किया।  शिव जी का विवाह होने लगा फेरे का समय आया और शिव जी और पार्वती ने  विवाह के सारे रीति रिवाजों से विवाह को किया। इस प्रकार शिव और पार्वती का विवाह संपन्न हुआ।

 यदि कोई भी शिव विवाह को पड़ता है सुनता है तो उसे शिव की कृपा उसे प्राप्त होती है।
 सावन महीने में जो लोग भी विवाह की कथा सुनते हैं पढ़ते हैं उन पर शिव की सदा कृपा बनी रहती है

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